नई दिल्ली। दक्षिण एशिया अब वैश्विक शक्ति-संतुलन की धुरी बनता जा रहा है और इसमें भारत की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। हाल ही में चीन के किंगदाओ में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का साझा घोषणा पत्र जारी नहीं हो सका क्योंकि भारत ने उस पर हस्ताक्षर करने से इसलिए मना कर दिया कि उसमें पहलगाम हमले का जिक्र नहीं था। वैश्विक स्तर पर माना जा रहा है कि भारत का रुख अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समुदाय के लिए एक निर्णायक संकेत है कि आतंकवाद पर कतई समझौता नहीं होगा। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों व कूटनीतिज्ञों ने भारत के इस कदम को नए भारत की विदेश नीति में उभरती कड़ाई व प्राथमिकता निर्धारण के रूप में देखा है। वाशिंगटन स्थित सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के वरिष्ठ विश्लेषक जेम्स क्लार्क ने कहा कि भारत अब बहुपक्षीय मंचों पर सिर्फ मौजूदगी जताने नहीं आता, बल्कि वह अपनी संप्रभु सुरक्षा चिंताओं को मजबूती से उठाने की नीति पर चल रहा है।
क्षेत्रीय स्थिरता का केंद्रीय आधार है भारत
वाशिंगटन स्थित कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के वरिष्ठ विश्लेषक एश्ले जे. टेलिस के अनुसार भारत द. एशिया का अकेला ऐसा देश है जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ स्थायित्व, विश्वास और क्षेत्रीय संतुलन को मजबूती से संभाल रहा है। अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद जो रणनीतिक खालीपन पैदा हुआ, उसे भरने में भारत की भूमिका बेहद अहम रही है।