भाजपा विधायक की विधायकी खत्म, हाईकोर्ट ने तीन साल कैद की सजा को रखा बरकरार

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-20 साल पहले उपखंड अधिकारी पर तान दी थी पिस्तौल

जयपुर। अंता से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा की विधायकी पर संकट खड़ा हो गया हैl हाईकोर्ट ने करीब 20 साल पुराने मामले में एडीजे अकलेरा, झालावाड़ द्वारा सुनाई गई 3 साल की सजा को बरकरार रखा है। ऐसे में अब उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म हो गई है l जनप्रतिनिधि कानून 1951 के तहत दो साल से ज्यादा की सज़ा होने पर सदस्य अयोग्य हो जाता है l कंवरलाल मीणा को झालावाड़ जिले की एडीजे अकलेरा कोर्ट ने राजकार्य में बाधा डालने,सरकारी अधिकारियों को डराने-धमकाने और सरकारी संपत्ति में तोड़फोड़ करने का दोषी मानते हुए 14 दिसम्बर 2020 को 3 साल की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ विधायक ने हाईकोर्ट में अपील की थी। लेकिन अब हाईकोर्ट ने भी विधायक की निगरानी याचिका को खारिज करते हुए उनकी सजा को बरकरार रखा है।

नजरअंदाज नहीं कर सकते
आपराधिक पृष्ठभूमि –

हाईकोर्ट ने कहा कि घटना के समय याचिकाकर्ता ने स्वयं को एक राजनीतिक व्यक्ति होना बताया। उस स्थिति में उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह कानून व्यवस्था को चुनौती देने की बजाए उसे बनाए रखने में सहयोग करे । लेकिन यहां पर उन्होंने दुबारा वोटिंग की मांग करते हुए एसडीएम की कनपटी पर पिस्टल तानकर जान से मारने की धमकी। वीडियोग्राफर की कैसेट निकालकर उसे तोड़ दिया। जबरन प्रशिक्षु आई ए एस अधिकारी का डिजिटल कैमरा कब्जा लिया जिसे बाद मे वापिस किया l इस प्रकार के अपराध से कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित होती है। आमजन और लोक सेवकों में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है, उनका मनोबल गिरता है। अदालत है कहा कि इस घटना से पूर्व याचिकाकर्ता के खिलाफ 15 अपराधिक प्रकरण दर्ज हो चुके थे। हालांकि अधिकांश में उसका दोष मुक्त होना बताया गया है। लेकिन फिर भी उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि को यहां पर नजरअंदाज किया जाना उचित नहीं है।

पुलिस की लाचारी दिखती है—-
मामले में परिवादी तत्कालीन एसडीएम रामनिवास मेहता की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एसएस होरा ने बताया कि 3 जनवरी 2005 को परिवादी को सूचना मिली कि मनोहरपुर थाने से दो किमी दूर दांगीपुरा-राजगढ़ मोड पर गांव के लोगों ने खाताखेड़ी के उप सरपंच के चुनाव के संबंध में दुबारा वोटिंग करवाने की मांग पर रास्ता रोक रखा है। सूचना पर वह प्रोबेशनर आईएएस डॉक्टर प्रीतम बी यशवंत और तहसीलदार रामकुमार के साथ मौके पर पहुंचकर लोगों से समझाइश कर रहा था।

करीब आधे घंटे बाद अभियुक्त कंवरलाल मीणा अपने कुछ साथियों के साथ मौके पर आया। उसने परिवादी की कनपटी पर रिवाल्वर तानकर कर कहा कि दो मिनट में वोटिंग दूबारा करवाने की घोषणा नहीं की तो जान से मार दूंगा। परिवादी ने उससे कहा कि इस तरह से जान जा सकती है लेकिन,दुबारा वोटिंग की घोषणा नहीं हो सकती है। गांव के लोगों ने भी अभियुक्त कंवरलाल को समझाया। उसके बाद उसने विभाग के फोटोग्राफर के कैमरे से कैसेट निकालकर उसे तोड़ा और फिर जला दिया। मौके पर अभियुक्त ने डॉक्टर यशवंत का डिजिटल कैमरा भी छीन लिया। जो करीब 20 मिनट बाद उन्हें लौटाया।

उन्होंने कहा कि घटना के समय दो थानाधिकारी और एक पुलिस उप अधीक्षक भी मौके पर मौजूद थे। लेकिन वह अभियुक्त का विरोध करने का साहस नहीं जुटा सके। चुनाव की कार्य से फ्री होने के बाद परिवादी ने अर्धशासकीय पत्र के द्वारा 5 फरवरी 2005 को अभियुक्त के खिलाफ मामला दर्ज कराया। लेकिन पुलिस ने मामला दर्ज होने के डेढ़ साल बाद आरोपी के खिलाफ चालान पेश किया। वहीं 3 साल बाद आरोपी को गिरफ्तार किया। यह कृत्य पुलिस की लाचारी को दिखाता है।

8 गवाह बयान से पलट गए-

आरोपी के एडवोकेट मनीष गुप्ता का कहना था कि घटना के दो दिन बाद काल्पनिक तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई l 11 में से 8 गवाह बयानों से मुकर गए। मौके पर उपस्थित थानाधिकारियों और पुलिस अधीक्षक ने भी उसी समय मामला दर्ज नहीं किया और ना ही उन्होंने घटना की पुष्टि की। याचिकाकर्ता को राजनीतिक कारणों से गलत तरीक़े से फंसाया जा रहा है। इसी कारण से ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 2 अप्रेल, 2018 को दोषमुक्त किया था। लेकिन अपील कोर्ट ने बिना किसी उचित आधार के आंशिक रूप से अपील स्वीकार करते हुए इन्हें दोषी करार दिया, जो विधि सम्मत नहीं है। हाईकोर्ट मीना की ओर से पेश दलील को मानने से इंकार करते हुए सजा के आदेश को बहाल रखा है l हाईकोर्ट ने विधायक कंवरलाल मीणा को तत्काल ट्रायल कोर्ट के सामने समर्पण करने के लिए कहा है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि अगर आरोपी तत्काल समर्पण नहीं करता है तो उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करे और 30 दिन में हाईकोर्ट को पूरी कार्रवाई हाईकोर्ट को बताने को कहा है l

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