जोधपुर। पृथ्वीराज रासो का प्रत्येक शब्द धर्म, संस्कृति व राष्ट्रीयता का गौरव है। राजाओं को उनका राष्ट्रीय कर्तव्य याद दिलाने में राज कवियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कवि की कलम ही नहीं उनका जीवन भी सदैव राष्ट्र को समर्पित रहा है। यह कहना है महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा गुजरात के प्रो. दीपेंद्र सिंह जाडेजा का। वे जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के हिंदी विभाग और भारतीय समाज विज्ञान एवं अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।
हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय काव्यधारा विषयक यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय के केंद्रीय कार्यालय स्थित बृहस्पति भवन सभागार में शनिवार को शुरू हुई। प्रो. जाडेजा ने उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि राष्ट्रीयता से बड़ा कोई भाव नहीं हो सकता। गांधीजी के विचार साझा करते हुए कहा कि जो देश अपनी भाषा के बजाय विदेशी भाषा में बात करें वह कभी आजाद नहीं हो सकता। उन्होंने सोहनलाल द्विवेदी को उद्धरित करते हुए कहा कि गुलामी के लड्डू खाने के बजाय आजादी के चने चबाना बेहतर है।
हिन्दी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. भारती गोरे ने बीज वक्तव्य देते हुए कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने इस भूमि को उपनिवेश के रूप में देखा और हम इस कपट को समझ नहीं पाए। यहां के राष्ट्र नायकों ने राष्ट्र के लिए आत्मोत्सर्ग किया। प्रो. भारती गोरे ने इस दौरान सिनेमा, पत्रकारिता एवं अन्य गतिमान साहित्य में प्रवाहित राष्ट्रीय चेतना पर भी बात की।
वरिष्ठ पत्रकार एवं उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि अभिषेक सिंघल ने कुंभ मेले का जिक्र करते हुए स्मृति एवं श्रुति परंपरा पर अपनी बात रखी। सिंघल ने प्रताप, स्वराज सहित अन्य समाचार पत्रों एवं पत्रकारों के माध्यम से स्वदेश प्रेम और राष्ट्रीय चेतना का भाव साझा किया।
कला संकाय अधिष्ठाता प्रो. मंगलाराम विश्नोई ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि वेदों – पुराणों में भी राष्ट्र तत्त्व की पुष्टि होती है। पौराणिक काल से वर्तमान समय तक कवियों ने अपनी लेखनी से राष्ट्र चेतना का भाव जगाए रखा है।
इससे पहले संगोष्ठी संयोजक एवं हिंदी विभाग अध्यक्ष प्रो. महीपाल सिंह राठौड़ ने स्वागत उद्बोधन दिया। सिंह ने विषय की प्रासंगिकता बताते हुए कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानी सत्ता का भोग ना करके बलि की वेदी पर पर चढ़ गए। सहायक आचार्य डॉ. प्रेम सिंह ने भूषण छंद एवं शोधार्थी प्रवीण कुमार मकवाना ने निराला की जागो फिर एक बार का सस्वर वचन किया। सत्र के अंत में संगोष्ठी सचिव डॉ. प्रवीण चंद ने धन्यवाद ज्ञापित किया। शोधार्थी चंद्रभान उद्घाटन सत्र के संयोजक रहे।
प्रथम दिन हुए दो तकनीकी सत्र
संगोष्ठी के पहले दिन उद्घाटन सत्र के अलावा दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम तकनीकी सत्र में काजरी जोधपुर के उपनिदेशक (राजभाषा) डॉ. नवीन कुमार यादव बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे। सत्र में राजस्थान विश्वविद्यालय के डॉ. विशाल विक्रम सिंह एवं जेएनवीयू की डॉ. कामिनी ओझा ने बतौर वक्ता अपनी बात रखी। प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. कुलदीप सिंह मीना एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विनीता चौहान ने किया।
द्वितीय तकनीकी सत्र में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड जोधपुर के प्रबंधक (राजभाषा) डॉ. शैलेष त्रिपाठी विशिष्ट अतिथि रहे। इस सत्र में राजस्थान विश्वविद्यालय के डॉ. सुंदरम शांडिल्य एवं जेएनवीयू की डॉ. कीर्ति महेश्वरी ने वक्ता के रूप में अपनी बात रखी। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता जेएनवीयू इतिहास विभाग के डॉ. भगवान सिंह शेखावत ने की एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. भरत कुमार ने किया। प्रथम तकनीकी सत्र का संयोजन शोधार्थी प्रवीण कुमार मकवाना एवं द्वितीय तकनीकी सत्र का संयोजन शोधार्थी मनोहर कंवर ने किया।