जयपुर। प्रदेश के अंदर भाजपा की सरकार है कांग्रेस की सरकार जा चुकी है कांग्रेस विपक्ष में बैठी है कांग्रेस के 60 से अधिक विधायक हैं इन विधायकों के अंदर अशोक गहलोत भी है सचिन पायलट भी है वही आधे से अधिक विधायक सचिन पायलट गुट के भी बताई जा रहे हैं इसमें मुकेश भाकर,रामनिवास गावड़िया, अभिमन्यु पूनिया, मनीष यादव समेत कई विधायक हैं जो कि सचिन पायलट गुट से आते हैं. वहीं कुछ विधायक अशोक गहलोत के भी हैं इसके अलावा कुछ विधायक ऐसे हैं जो कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों को ही राम-राम करते हैं, इनमें दोनों के प्रति काफी ईमानदारी भी है मगर उनकी आपसी लड़ाई में ही भाजपा को अभी भी फायदा मिल रहा है हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव के अंदर भी यही देखने को मिला जहां पर कांग्रेस की तीन सीट भी कम हो गई जिसमें झुंझुनू, देवली उनियारा और रामगढ़ शामिल है . बात करें तो मातृ दौसा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज करी है . दौसा सीट पर जीत दर्ज का आंकड़ा भी बहुत कम ही है वहां पर डीसी बैरवा ने मात्र 2300 वोटो से जीत दर्ज करी थी . वहीं भाजपा को यहां पर काफी फायदा मिला भाजपा ने 7 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज करी और इसका प्रमुख कारण नहीं माना जा रहा है कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच आपसी टकराव जो कि जग जाहिर है. उसी के चलते ही यहां पर भाजपा को एक बड़ा फायदा मिला था. अब चुनाव बीत चुके हैं नया साल भी आ गया है भजनलाल सरकार ने अपनी पहली वर्षगांठ भी अच्छे से मनायी है, वहीं विधानसभा सत्र चल रहा है बजट सत्र में यही माना जा रहा था कि बजट सत्र इस बार का काफी हंगामेदार होगा पर ऐसा देखने को भी मिला मगर अभी भी इन दोनों नेताओं की आपसी फूट देखने को मिलती रहती है खासतौर से उनके कार्यकर्ताओं के बीच काफी ज्यादा रोष देखने को मिलता है. अब सोचने समझने वाली बात है कि कांग्रेस के पास अभी भी 4 साल बचे हैं जहां पर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जो की मोरिया मोरिया करते हमेशा दिखाई देते हैं इस बार उपचुनाव के अंदर वह भी नहीं दिखा वही टीकाराम जूली जो की नेता प्रतिपक्ष हैं विधानसभा में वह भी रामगढ़ की सीट पर कुछ खास नहीं कर पाए मगर विधानसभा के अंदर बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका वह बड़े ही शानदार तरीके से निभा रहे हैं और यही कारण है कि सत्र शुरू होने के बाद से ही कांग्रेस पूरी तरीके से भाजपा पर हावी रही है मगर कांग्रेस के यह दो बड़े नेता अभी भी आपसी मनमुटाव के चलते फ्रंट पर नहीं आ रहे हैं अगर यह दोनों नेता ही अगर आगे आ जाए और एक होकर सत्ता पक्ष पर प्रहार करें तो कहीं ना कहीं विपक्ष की भूमिका बड़ी ही खतरनाक हो जाएगी. क्योंकि अशोक गहलोत तीन बार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं संसद से लेकर विधानसभा तक का एक लंबा अनुभव है राजनीति का और सचिन पायलट केंद्र में मंत्री रह चुके हैं एक बार प्रदेश के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं कांग्रेस के एक अच्छा अनुभव हो गया है उनको जोशीले हैं भीड़ जुटा सकते हैं और अपनी बात रख सकते हैं अगर यह दोनों ही मिल जाए तो राजस्थान की राजनीति ऐसी हो जाएगी जो किसी ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा क्योंकि अशोक गहलोत की उम्र हो चुकी है वह सिर्फ मार्गदर्शन ही बन सकते हैं उनके मार्गदर्शन में अगर चलें तो आने वाले समय में प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी कांग्रेस विभिन्न राज्यों में सरकार बन सकती है अशोक गहलोत का अनुभव ऐसा है जिसमें वह जानते हैं कहां पर किस तरीके से अपने दिमाग का इस्तेमाल करना है अपनी राजनीतिक तरीके से काम करना है वही अनुभवी सरकार बनाने में कामयाब भी होता है सचिन पायलट की बात करें सचिन पायलट पेड़ जुटा सकते हैं अपनी बात आगे रख सकते हैं अपने साथ अन्य को कार्य कर्ताओं को लेकर चलते हैं इन दोनों नेताओं की खासियत भी यही है कि कार्यकर्ताओं को काफी अहमियत देते हैं और यही कारण है कि इन दोनों की फैन फॉलोइंग जबरदस्त है राजस्थान के अंदर भी और राजस्थान के बाहर भी. अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक हो जाते हैं तो राजस्थान में आने वाले विधानसभा चुनाव के अंदर कांग्रेस को आने से कोई नहीं रोक सकता और कांग्रेस बहुमत के साथ आएगी।

अभी भी नहीं रुकी है गहलोत और पायलट के बीच की तकरार
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