बालोतरा। सर्दी के मौसम में शीत लहर एवं पाले से सभी फसलों को नुकसान होता है। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलस कर झड़ जाते हैं तथा अध-पके फल सिकुड़ जाते हैं। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं। इसके बचाव हेतु कृषि विभाग ने एडवाइजरी जारी की है ताकि किसान अपनी फसलों की सुरक्षा कर सकें। कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार यादव ने बताया कि शीत लहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपायों का अपनाकर कृषक साथी अपनी फसलों को नुकसान से बचा सकेगें। उन्होने बताया कि पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों एवं नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिये फसलों को टाट, पोलीथिन अथवा भूसे से ढ़कें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचनगार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटायें। जब पाला पड़ने की सम्भावना हो, तब फसलों में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये।
नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। जिससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नही गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। उन्होने बताया कि जिन दिनों पाला पड़ने की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत (2) ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिड़काव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहरातें रहें अथवा थायो यूरिया 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें। सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है, जो पौधों में रोग रोधिता बढाती है।