सवाई माधोपुर। प्रदेश में गर्मी ने प्रचंड रूप धारण कर लिया है। आगामी पांच दिन हीटवेव का असर और तेज रहेगा। दिन के तापमान में भी दो डिग्री तक और बढ़ोतरी होने की सम्भावना है। इस संबंध में मौसम केन्द्र जयपुर ने पांच दिन राज्य में ऑरेज और रेड अलर्ट जारी किया है। मौसम विभाग के अनुसार हीटवेव के चलते दिन का तापमान सामान्य से अधिक दर्ज किया जा रहा है।
बढ़ते तापमान व भीषण गर्मी के मद्देनजर जिला प्रशासन ने आमजन से बचाव रखने की अपील की है। विशेषकर बच्चों, बूढ़ों, गर्भवतियों तथा बीमार व्यक्तियों द्वारा एहतियात बरतने पर जोर दिया गया है।
जिला कलक्टर डॉ. खुशाल यादव ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को सभी अस्पतालों में लू-तापघात के रोगियों के लिए गाइडलाइन अनुसार बैड आरक्षित रखते हुए वहां कूलर व शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, संस्थान में रोगी के उपचार के लिए आपातकालीन किट में ओआरएस, ड्रिपसेट, फ्लूड एवं आवश्यक दवाईयां रखने के निर्देश दिए हैं।
जिला प्रशासन ने आमजन के लिए जारी अपील में कहा है कि जहां तक संभव हो धूप में न निकलें। निकलें तो शरीर पूर्ण तरह से ढका हो। सफेद या हल्के रंग के ढीले व सूती कपड़ों का उपयोग करें। लू-तापघात से प्रायः कुपोषित बच्चे, बीमार, वृद्व, गर्भवती महिलाएं और श्रमिक आदि शीध्र प्रभावित हो सकते हैं। इन्हे प्रातः 10 बजे से सांय 6 बजें तक तेज गर्मी से बचाने के लिए छायादार ठंडे स्थान पर रहने का प्रयास करें। लू के लक्षण प्रतीत होने पर तुरंत प्राथमिक उपचार करते हुए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाएं।
लू-तापघात से बचाव के लिए ये सावधानियां बरतें:-
अधिक भीड़, गर्म घुटन भरे कमरों से बचें, रेल बस आदि की यात्रा अत्यावश्यक होने पर ही करें।
बिना भोजन किए बाहर न निकलें।
भोजन करके एवं पानी पी कर ही बाहर निकलें।
सड़े-गले फल व बासी सब्जियों का उपयोग हरगिज ना करें।
कान एवं सिर को गमछे या तौलिये से ढक कर ही धूप में निकलें।
रंगीन चश्में एवं छतरी का प्रयोग करें।
गर्मी मे हमेशा पानी एवं पेय पदार्थाे जैसे नींबू पानी, नारियल पानी, ज्यूस, छाछ, ठण्ड़ा पानी आदि का प्रयोग करते रहें।
मनरेगा अथवा श्रमिकों के कार्यस्थल पर छाया एवं पानी का पूर्ण प्रबन्ध रखा जावे, ताकि श्रमिक थोडी-थोडी देर में छायादार स्थानों पर विश्राम कर सकें।
कार्बाेनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक से बचें।
लू तापघात के लक्षण:- सीएमएचओ डॉ. धर्मसिंह मीना के अनुसार शरीर में लवण व पानी अपर्याप्त होने पर विषम गर्म वातावरण में लू व तापघात निम्नांकित लक्षणों के द्वारा प्रभावी होता है-
सिर का भारीपन व सिरदर्द।
अधिक प्यास लगाना व शरीर में भारीपन के साथ थकावट।
जी मिचलाना, सिर चकराना व शरीर का तापमान बढ़ना (105 एफ या अधिक)।
पसीना आना बंद होना, मुंह का लाल हो जाना व त्वचा का सूखा होना।
अत्यधिक प्यास का लगना, बेहोशी जैसी स्थिति का होना।
क्या है लू तापघात:- चिकित्सकीय दृष्टि से लू तापघात के लक्षण लवण व पानी की आवश्यकता व अनुपात विकृति के कारण होती है। मस्तिष्क का एक केंद्र जो मानव के तापमान को सामान्य बनाए रखता है, काम करना छोड़ देता है। लाल रक्त कोशिकाएं रक्त वाहिनियों में टूट जाती हैं व कोशिकाओं में जो पोटेशियम लवण होता है वह रक्त संचार में आ जाता है जिससे ह्रदय गति, शरीर के अन्य अंग व अवयव प्रभावित होकर लू तापघात के रोगी को मौत के मुंह में धकेल देते हैं।
लू-तापघात से प्रभावित व्यक्ति का तत्काल ऐसे करें प्राथमिक उपचार:- लू-तापघात से प्रभावित रोगी को तुरंत छायादार जगह पर कपड़े ढीले कर लेटा दिया जावे एवं हवा करें। व्यक्ति को तुरंत ठंडा पानी, ओआरएस, नींबू पानी, नारियल पानी, कच्चे आम का पना जैसे पेय पदार्थ पिलाएं। पानी व बर्फ से शरीर को ठंडा करने का प्रयास करें फिर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाएं। सीएमएचओ ऑफिस में जिला स्तरीय कंट्रोल रूम 07462-235011 गठित किया गया है।
लू-तापघात से बचाए पशुधन:-
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रामनारायण वर्मा बताया कि गौवंश को धूप एवं लू-ताप से बचाने के लिए गौशाला संचालक संधारित गौवंश हेतु पर्याप्त छाया की व्यवस्था करें तथा शैड को गर्म हवाओं से प्रकोप से बचाने के लिए तिरपाल अथवा टाट, बोरे से ढके।
गौवंश हेतु पर्याप्त मात्रा में चारा, भूसा एवं पशुआहार की व्यवस्था हेतु गौशाला र्प्रबंधन समुचित व्यवस्था करें।
गौवंश को दिन में कम से कम चार बार ठण्डा, शुद्ध एवं पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
बीमार तथा अषक्त गौवंशों हेतु संबंधित पशु चिकित्सा कार्मिकों की देखरेख में उपचार की व्यवस्था की जाये।
गौशालाओं में संधारित गर्भवती एवं असहाय गौवंश की विशेष देखभाल की जाये एवं आवश्यकता पडने पर चिकित्सकीय उपचार की व्यवस्था की जाये।
गौशाला में आगजनी से गौवंश के बचाव के समुचित प्रबंधन किये जाये।
मृत गौवंश का निस्तारण यथाशीघ्र सुरक्षित एवं सम्मानजनक ढंग से किया जाये जिससे गर्मी के कारण शव का पुट्रीफिकिशन (विपुटन) न होने पाये और बीमारी का खतरा न पैदा हो।