कामां। तीर्थराज विमल कुण्ड स्थित हरिकृपा आश्रम पर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर स्वामी हरि चैतन्यपुरी महाराज ने इस अवसर पर भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि जन्म सार्थक उसी का है जिसका जीवन उत्थान की ओर हो पतन की ओर नहीं। परमात्मा एक है उनके नाम उपासना विभिन्न हो सकते हैं हम सभी उस एक ही सर्वशक्तिमान की संतान हैं जो जीव मात्र का परम सुहृदय व हितैषी है। कर्म के साथ-साथ उसमें पूर्ण व दृढ़ विश्वास करो। प्रभु की कृपा निश्चय ही समस्त बंधनों,समस्त विपत्तियों व समस्त कठिनाइयों से उबार लेगी। कैसा भी पापी यदि प्रभु शरण में आ जाए तो वे उसे साधु या भक्त बना लेते हैं। उसे सनातन शांति मिल जाती है। उस भक्त का कभी पतन नहीं होता। उनकी कृपा सारे सकंटो से अनायास ही उभार लेती है। यदि प्रयास के साथ-साथ ईश्वर की महानता पर भी विश्वास हो तो निश्चय ही हम दुखों से मुक्त हो सकते है।अतरू प्रतिकूल परिस्थितियों में जब चारों ओर केवल निराशा और घोर अंधकार ही दिखाई दे, अशांति की भयानक आंधी हो उस समय पूर्ण दृढ़ विश्वास के साथ प्रभु चिंतन करते हुए चिंताओं का परित्याग करके अपना कर्म करो। अपने सुख दुख,सांसारिक प्राणियों के सामने रोने के बजाए सतगुरु या परमात्मा के सामने ही रोना चाहिए।
उन्होंने कहा कि तीर्थ स्थलों,उपासना स्थलों,प्राकृतिक रमणीय स्थलों,हिमालय इत्यादि में शांति मिलती है लेकिन उस शांति को बरकरार रखना या ना रखना हमारे ऊपर निर्भर करता है। परमात्मा का स्मरण मात्र मुख से नहीं, साथ ही हृदय से यदि हो तो विशेष लाभदायक होता है। धर्म से, गुरु से या किसी संत से अथवा परमात्मा से यदि आप जुड़े हैं तो आपका और भी उत्तर दायित्व हो जाता है कि आपके खानपान,रहन सहन,बोलचाल, व्यवहार, आचरण व स्वभाव आदि से लगे कि आप धर्म,सतगुरु या परमात्मा से जुड़े हो। पापाचार, अनाचार तथा बुराइयों को त्याग कर सत्कार्य करें तभी हमारा सत्संग में आना,मंदिरों, तीर्थों तथा विभिन्न धर्मस्थलों में आना,पूर्ण सार्थक होगा।

जन्म सार्थक उसी का है जिसका जीवन उत्थान की ओर हो-हरिचैतन्य पुरी
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