आंध्र प्रदेश की राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो चुकी कांग्रेस क्या दिखा पाएगी कोई करिश्मा

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आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है। आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। बता दें कि साल 2009 में संयुक्त आंध्र प्रदेश के कुल 42 लोकसभा सदस्यों में से 33 कांग्रेस के थे। लेकिन वर्तमान समय में राज्य में कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए पार्टी आलाकमान ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की नेता वाईएस शर्मिला को कांग्रेस में शामिल कर लिया। ऐसे में कांग्रेस को उम्मीद है कि शर्मिला के आने के बाद रसातल में पहुंची कांग्रेस को नई संजीवनी मिलेगी।

एक समय पर जब राज्य से संसद पहुंचने वाले कांग्रेल निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या सबसे ज्यादा थी। वहीं राज्य के विभाजन के बाद पार्टी का एक भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है। बता दें कि साल 2014 के बाद से कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा है। वहीं कई सालों से कांग्रेस की आंध्र प्रदेश इकाई एकजुटता की कमी और नेतृत्व को लेकर आंतरिक खींचतान जैसे मुद्दों से जूझ रही है। पार्टी कार्यकर्ताओं की मानें, तो राज्य में पार्टी के पतन का यही मुख्य कारण है।

आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव से पहले शर्मिला को शामिल कर सूबे में अपनी इस राजनीतिक पहल को बड़ी और गंभीर होने का संदेश देने का प्रयास किया है। प्रदेश में कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ शिखर से शून्य पर आ चुका है। वहीं पिछले दो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया। आंध्र प्रदेश में विधानसभा की 175 सीटे हैं। ऐसे में इस राज्य में पार्टी को पुनजीर्वित करने के लिए कांग्रेस को किसी करिश्मे की जरूरत है। ऐसे में पार्टी को यह संभावनाएं शर्मिला में नजर आ रही हैं।

आंध्र प्रदेश के विभाजन पर जनता के गुस्से की वजह से राज्य की राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के एक दशक के बाद कांग्रेस अपनी वापसी में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। वहीं कांग्रेस राज्य में नेताओं से अपना खेल बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही है। जो विधानसभा चुनाव के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में यह देखना वाकई दिलचस्प होने वाला है कि क्या राज्य में कांग्रेस अच्छी वापसी कर पाएगी।

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