मिस्र में, साल 2016 और 2024 के बीच, बैंक खाता रखने वाले लोगों की संख्या में तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई और ये संख्या 1 करोड़ 71 लाख से बढ़कर 5 करोड़ 1 लाख से अधिक हो गई. विशेषज्ञों का मानना है कि बैंक खाता होना वित्तीय समावेशन के लिए बेहद ज़रूरी है. ख़ास बात यह है कि इस दौरान मिस्र में महिलाओं के बैंक खातों की संख्या में 260 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, हालाँकि लैंगिक अन्तर अब भी मौजूद है.वित्तीय समावेशन को कैसे बढ़ाया जाए, यह सवाल आज पूरे अरब क्षेत्र के सामने चुनौती बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के पश्चिमी एशिया के आर्थिक और सामाजिक आयोग (UNESCWA) की गुरूवार को प्रकाशित रिपोर्ट, इस गम्भीर समस्या को उजागर करती है.रिपोर्ट बताती है कि अरब क्षेत्र के 22 देशों में लगभग 64 प्रतिशत वयस्कों का अब भी कोई बैंक खाता नहीं है. यह आँकड़ा दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र से अधिक है और वैश्विक औसत 24 प्रतिशत से कहीं अधिक है.रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वित्तीय सेवाओं में इस स्तर का पिछड़ापन, आर्थिक अवसरों को सीमित करेगा और 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने की क्षमता को प्रभावित करेगा.इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक ESCWA के मारियो जेल्स का कहना है। “अरब क्षेत्र अब वित्तीय सेवाओं को विलासिता की तरह नहीं देख सकता. अगर समावेशी वित्त नहीं हुआ, तो हम लोगों को ना तो निर्धनता से बाहर निकाल पाएँगे, ना छोटे व्यवसायों को समर्थन दे पाएँगे और ना ही समान विकास का सपना पूरा कर पाएँगे.”गहराता डिजिटल विभाजनसंयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि अरब क्षेत्र में महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों की वित्तीय सेवाओं तक पहुँच अत्यन्त सीमित है. इस क्षेत्र में केवल 29 प्रतिशत महिलाएँ और 21 प्रतिशत विकलांग लोगों का ही बैंक खाता हैं. यही नहीं, ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले लोगों, युवाओं और बुज़ुर्गों की भी बैंकिंग व्यवस्था में कम उपस्थिति है.रिपोर्ट यह भी दर्शाती है

अरब देशों में 60% लोग अब भी बैंकिंग व्यवस्था से बाहर
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