दोपहिया वाहन, ग्रामीण ही नहीं शहरी भारत की भी रीढ़ है, क्यों कि इनका इस्तेमाल कमोबेश हर घर-परिवार में होता है।इस साल अक्टूबर 2025 में दोपहिया वाहनों की बिक्री रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई, यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत ही शुभ संकेत कहा जा सकता है।शुभ संकेत इसलिए क्यों कि वर्तमान समय में वैश्विक आर्थिक हालात बेहद अनिश्चित बने हुए हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि युद्ध, महंगाई और आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं विश्व अर्थव्यवस्था को कहीं न कहीं अवश्य ही प्रभावित कर रही हैं। यही कारण है कि आज कई देशों में बेरोजगारी और मुद्रा अस्थिरता की स्थिति तक बनी हुई है। ऊर्जा संकट और जलवायु परिवर्तन से उत्पादन लागत बढ़ रही है। यहां तक कि निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा है और बाजारों में उतार-चढ़ाव जारी है। विकासशील देशों पर कर्ज़ और व्यापार घाटे का दबाव बढ़ रहा है। इन सबके बीच स्थायी और संतुलित आर्थिक नीतियों की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे अनिश्चित वैश्विक आर्थिक हालात में एफ.ए.डी.ए. के दोपहिया वाहन बिक्री के आंकड़े राहत भरे हैं और ये कहीं न कहीं उपभोक्ताओं के लौटते भरोसे का भी प्रतीक हैं।
एफ.ए.डी.ए. के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2025 में दोपहिया वाहनों की बिक्री लगभग 31.5 लाख (3.15 मिलियन) यूनिट्स रही। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह वृद्धि पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में लगभग +51.76% है।42-दिन (त्योहार अवधि) में दोपहिया वाहनों की बिक्री वर्ष-पूर्व की तुलना में +22% रही तथा इस दौरान समग्र वाहन बिक्री +21% रही।न केवल दोपहिया वाहन, बल्कि इस महीने में (अक्टूबर माह 2025 में) चौपहिया वाहनों की बिक्री में भी इजाफा हुआ है।एफ.ए.डी.ए. के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर 2025 में कुल वाहन रिटेल 40.23 लाख यूनिट (वाई ओ वाई यानी कि वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि लगभग 40.5 %) रही। वहीं दूसरी ओर पैसेंजर वाहन (चारपहिया) 5.57 लाख यूनिट (वाई ओ वाई वृद्धि लगभग 11.35 %) तथा वाणिज्यिक वाहन (कमर्शियल व्हीकल्स) 1,07,841 यूनिट (साल दर साल लगभग 17.7% की वृद्धि) रही। दरअसल, वाहनों की बिक्री बढ़ने के पीछे कुछ कारण रहे। मसलन, सरकार द्वारा लागू की गई जीएसटी 2.0 सुधारों के अंतर्गत एंट्री-लेवल दोपहिया वाहनों पर टैक्स दरों में कटौती हुई, जिससे इन वाहनों की कीमतें कम हुईं और खरीदने वालों के लिए आकर्षक बनीं। जानकारी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में वृद्धि शहरी की तुलना में कहीं अधिक रही है। वास्तव में, दोपहिया वाहनों की बिक्री में ग्रामीण-शहरी वृद्धि का अन्तर काफी उल्लेखनीय रहा। त्योहारों का सीजन (दशहरा-दिवाली) और ग्रामीण स्थानों में मांग में वृद्धि इसका विशेष कारण रहे। दरअसल, अच्छे मानसून एवं ग्रामीण क्रय शक्ति ने भी इसमें काफी मदद की। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि एफ.ए.डी.ए. का पूरा नाम है-‘
फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन्स)।’ बहुत कम लोग ही यह जानते होंगे कि यह एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन (नेशनल बाडी) है, जो भारत में सभी वाहन डीलरों (आटोमोबाइल डीलर्स )-जैसे कि कार, बाइक, ट्रक, बस आदि के शोरूम या बिक्री केंद्र का प्रतिनिधित्व करता है। वास्तव में, यह भारत के वाहन डीलरों का एक प्रतिनिधि संगठन है, जो सरकार, कंपनियों और ग्राहकों के बीच एक संतुलनकारी भूमिका निभाता है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि वाहनों की बिक्री (दोपहिया, चौपहिया) से किसी भी अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होता है। दरअसल, वाहन उद्योग (दोपहिया और चौपहिया) को किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। इससे न केवल परिवहन सुगम होता है, बल्कि लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है-जैसे कि उत्पादन, बिक्री, मरम्मत, बीमा, और परिवहन सेवाओं में। वाहन उद्योग में वृद्धि से स्टील, पेट्रोलियम, रबर, प्लास्टिक, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे सहायक उद्योगों को भी गति मिलती है। इतना ही नहीं, सरकार को वाहन बिक्री पर लगने वाले टैक्स, जीएसटी, और रजिस्ट्रेशन शुल्क के रूप में भारी राजस्व प्राप्त होता है। वाहनों की संख्या बढ़ने से पर्यटन, ई-कॉमर्स और लॉजिस्टिक सेक्टर में भी तेजी आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में दोपहिया वाहनों के प्रसार से किसानों और छोटे व्यवसायियों की उत्पादकता बढ़ती है। आज के समय में इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता चलन हमारे देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रहा है। इस तरह वाहन उद्योग आर्थिक विकास, रोजगार और औद्योगिक प्रगति-तीनों का प्रमुख आधार बन चुका है। बहरहाल, फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (एफएडीए) के आंकड़े यह बताते हैं कि अक्तूबर में यात्री वाहनों की बिक्री में 11.35 और दोपहिया वाहनों की बिक्री में सालाना आधार पर 51.76 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था की अंदरूनी लहर को ही दर्शाती है। यहां पाठकों को जानकारी देता चलूं कि भारत में दोपहिया वाहन उद्योग विश्व के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। देश में कई प्रमुख कंपनियां हैं जो अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता, तकनीक और किफायती दामों के लिए जानी जाती हैं।मसलन, हीरो मोटोकॉर्प भारत की सबसे बड़ी दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी है, जो स्प्लेंडर, पैशन और एचएफ डीलक्स जैसे लोकप्रिय मॉडल बनाती है। होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया (एचएमएसआइ) एक्टिवा और शाइन जैसे मॉडल के लिए प्रसिद्ध है। वहीं पर टीवीएस मोटर कंपनी अपाचे और जुपिटर जैसे मॉडलों के कारण युवाओं में खास लोकप्रिय है। बजाज ऑटो अपने पल्सर और प्लेटिना रेंज के लिए जानी जाती है, जबकि रॉयल एनफील्ड अपने क्लासिक और बुलेट मॉडलों से प्रीमियम सेगमेंट पर कब्जा रखती है। इसके अलावा सुजुकी, यामाहा और महिंद्रा टू व्हीलर्स जैसी कंपनियां भी बाजार में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं। इन सभी कंपनियों ने न केवल घरेलू बाजार में बल्कि निर्यात के क्षेत्र में भी भारत की पहचान को विश्व स्तर पर मजबूत किया है।इस बार त्योहारी सीजन के आसपास से, जब से जीएसटी में कटौती की गई है,तब से ही हीरो, होंडा, बजाज और टीवीएस जैसी कंपनियों के शोरूम फिर से गुलजार हैं, तो इसका सीधा सा मतलब यह है कि गांव-कस्बों में लोग फिर से कर्ज लेकर या बचत खर्च कर नए वाहन खरीद रहे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले कुछ समय से देश की कृषि अर्थव्यवस्था में भी सुधार देखने को मिला है। वहीं इस बार हमारे देश में मानसून भी खूब अच्छा रहा और इससे उत्पादन भी अच्छा रहा। उत्पादन अच्छा होने से किसान समृद्ध और खुशहाल हुए हैं और उनकी क्रय शक्ति बढ़ी है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी का असर अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी प्रवाह बढ़ा है, आमजन के हाथ में पैसा आया है और शायद यही वजह भी है कि आज उपभोक्ता मांग में भी सुधार देखा जा रहा है। आज किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिल रहा है, जिससे उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि हुई है। यह सकारात्मक परिवर्तन न केवल कृषि क्षेत्र बल्कि हमारे देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए कहीं न कहीं उत्साहजनक व सकारात्मक संकेत है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने के उद्देश्य से रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की है। वर्ष 2026-27 के रबी विपणन सत्र के लिए घोषित नए एमएसपी के अनुसार, गेहूं का मूल्य ₹ 2,585 प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जो पिछले वर्ष ₹ 2,425 था-यानी ₹ 160 प्रति क्विंटल की वृद्धि। इसी तरह जौ की एमएसपी ₹ 2,150 (₹ 170 की वृद्धि), चना ₹ 5,875 (₹ 225 की वृद्धि), मसूर ₹ 7,000 (₹ 300 की वृद्धि), सरसों ₹ 6,200 (₹ 250 की वृद्धि) और कुसुम ₹ 6,540 (₹ 600 की वृद्धि) प्रति क्विंटल तय की गई है। दरअसल, सरकार का यह लक्ष्य है कि किसानों को उनकी फसल की लागत से कम-से-कम 50 प्रतिशत अधिक मूल्य मिले ताकि उन्हें उचित लाभ प्राप्त हो सके। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले एक दशक में एमएसपी के तहत अनाजों की सरकारी खरीद में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।साल 2014-15 में 761 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर साल 2024-25 में यह 1,175 लाख मीट्रिक टन हो गई है, जो लगभग दोगुनी है। इतना ही नहीं, इसी अवधि में किसानों को एमएसपी के तहत भुगतान की राशि लगभग तीन गुना बढ़कर ₹ 3.33 लाख करोड़ तक पहुंच गई है। इस बढ़ोतरी से न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में निवेश को भी नई गति मिली है। अतः कुल मिलाकर यहां यह बात कही जा सकती है कि एमएसपी में वृद्धि, अनुकूल मौसम(अच्छा मानसून) और विभिन्न सरकारी प्रोत्साहनों के चलते आज भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ लगातार तेज़ हो रही हैं, जिसका सकारात्मक असर खुदरा बाज़ारों और औद्योगिक उत्पादन पर भी दिखाई पड़ा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि
भारत में ऑटो क्षेत्र का भविष्य तेजी से बदलते परिवेश में पर्यावरणीय संतुलन के साथ जुड़ता जा रहा है। देश में इलेक्ट्रिक वाहनों , हाइब्रिड टेक्नोलॉजी और ग्रीन फ्यूल जैसे इथेनॉल, सीएनजी और हाइड्रोजन पर आधारित वाहनों का विस्तार हो रहा है। सरकार भी ‘नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन’ और ‘फेम इंडिया स्कीम’ जैसी योजनाओं से इस दिशा में प्रोत्साहन दे रही है। आने वाले वर्षों में पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों की जगह पर्यावरण अनुकूल वाहनों का बोलबाला होगा। इससे न केवल प्रदूषण घटेगा बल्कि देश की तेल आयात पर निर्भरता भी कम होगी। ऑटो उद्योग में तकनीकी नवाचार, बैटरी निर्माण, रीसाइक्लिंग और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भारत को स्वच्छ ऊर्जा की ओर अग्रसर करेगा। इस प्रकार, भारत का ऑटो क्षेत्र भविष्य में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण और अहम् भूमिका निभाएगा।हाल फिलहाल, सरकार को यह चाहिए कि वह इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए और ज्यादा आकर्षक पहल करे, ताकि लोग पेट्रोल-डीजल वाहनों की बजाय ईवी(इलैक्ट्रिक व्हीकल्स) खरीदने के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रेरित और प्रोत्साहित हों।इसके साथ ही चार्जिंग स्टेशन हर शहर और हाइवे पर तेजी से बढ़ाए जाने की आवश्यकता है, ताकि लोगों को चार्जिंग की दिक्कत न हो। इतना ही नहीं, सरकार को पुराने और प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की स्क्रैप नीति को भी सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है, ताकि सड़क पर सिर्फ सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल वाहन ही चलें। इससे न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि ऑटो सेक्टर में नई तकनीक और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। जब ये सारी नीतियां प्रभावी रूप से लागू होंगी, तब वाहनों की बिक्री और उत्पादन दोनों बढ़ेंगे। निश्चित ही इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी नई रफ्तार मिल सकेगी। लोग भी स्वच्छ और सस्ती यात्रा का आनंद ले पाएंगे। ऊर्जा की भी बचत होगी और तेल आयात पर निर्भरता घटेगी। उद्योगों में निवेश बढ़ेगा और हरित विकास को बल मिलेगा। इस तरह देश का ऑटो क्षेत्र और अर्थव्यवस्था दोनों ही तेजी से आगे बढ़ेंगे।
-सुनील कुमार महला



