मणिपुर में जारी हिंसा का समाधान निकालने के लिए होम मिनिस्टर अमित शाह आज राज्य के दौरे पर हैं । इस दौरान वह राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के अलावा अन्य मंत्रियों एवं अहम संगठनों के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं । इस दौरान वह हिंसा से निपटने और सुलह का रास्ता क्या हो सकता है। इस पर मंथन चालू है । उनका दौरा मणिपुर हिंसा से निपटने के लिहाज से अहम माना जा रहा है। लेकिन इस बीच राज्य में एक बार फिर से हिंसा का दौर तेज हो गया है। रविवार को ही एक बार फिर से भड़की हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत 5 लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा 12 अन्य लोग जख्मी हुए हैं।
यही नहीं सेना और पुलिस की कार्रवाई में बीते 4 दिनों में 40 उग्रवादी भी ढेर किए गए हैं। सीएम बीरेन सिंह ने रविवार को ही बताया था कि मणिपुर में 40 सशस्त्र कूकी उग्रवादियों को मार गिराया गया है। मणिपुर में 3 मई के बाद से ही हिंसा का दौर जारी है। राज्य की राजधानी इम्फाल के आसपास बसे मैतेई समुदाय और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कूकी समुदायों के बीच यह हिंसा चल रही है। इसकी वजह मणिपुर हाई कोर्ट का एक फैसला बना है, जिसमें उसने सरकार को सलाह दी थी कि उसे मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजना चाहिए। इस प्रस्ताव को लेकर कूकी समुदाय भड़क गए थे और उन्होंने इसके खिलाफ रैली निकाली थी। उस रैली के दौरान हिंसा भड़क गई थी और तब से हालात को संभाला नहीं जा सका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर की हिंसा में अब तक 79 लोग मारे जा चुके हैं। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि कूकी उग्रवादी हथियारों से लैस हैं और वे हिंसा को बढ़ा रहे हैं। हालात इतने खराब हैं कि राज्य के विधायकों और मंत्रियों तक को उपद्रवी नहीं बख्श रहे हैं और उनके घरों में हमले किए जा रहे हैं। राज्य में 3 मई के बाद से ही कई इलाकों में कर्फ्यू लगा है। बीते दिनों कुछ राहत दी भी गई थी, लेकिन फिर से हिंसा का दौर शुरू होने के बाद एक बार फिर सख्ती बढ़ाई गई। जैसे इम्फाल वेस्ट और इम्फाल ईस्ट जिलों में कर्फ्यू में ढील देते हुए सुबह 5 बजे से शाम 4 बजे तक लोगों को अनुमति दी गई थी। लेकिन अब इस टाइम को घटा दिया गया है और लोगों को सुबह 11:30 बजे तक ही घर से बाहर निकलने की परमिशन है। इसके अलावा बिष्णुपुर में भी कर्फ्यू में ढील सुबह 5 बजे से 2 बजे की बजाय 12 बजे तक ही रहेगी।
हाल ही में सेना और सुरक्षाबलों की छापेमारी के दौरान भारी तादाद में हथियार और गोला-बारूद बरामद हो रहे हैं। इससे साफ है कि यह हिंसा अचानक नहीं भड़की। इसकी तैयारियां लंबे समय से चल रही थी। कुछ दिनों की शांति के बाद इस सप्ताह की शुरुआत से नए सिरे से हिंसा और आगजनी भड़क उठी है। नाराज लोगों ने कई मंत्रियों और सांसदों के घरों पर भी हमले किए हैं। देखा जाय तो मणिपुर की हिंसा के पीछे आतंकवादी समूहों की साजिश का भी पर्दाफाश हो रहा है। सेना ने इस साजिश का पर्दाफाश भी किया है जिससे पता चलता है कि आतंकवादी समूह हिंसा को भड़काने के लिए लोगों को कवच के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। सेना को इस बात की भी आशंका है कि मणिपुर के विद्रोही संगठन बड़े हमले की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल सेना ने उग्रवादी संगठनों के बीच हुई बातचीत को डि-कोड किया है। नगा और कुकी जातियां मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के खिलाफ हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे मैतेई समुदाय उन के अधिकारों को हड़प लेगा और राजनीतिक तौर पर भी मैतेई समुदाय और अधिक प्रभावशाली बन जाएगा। हालांकि मणिपुर में जातियों की लड़ाई की वजहों को समझना सरल नहीं है। इसके लिए हमें मणिपुर की सामाजिक स्थिति को समझना होगा।
मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख के करीब है। यहां तीन मुख्य समुुदाय हैं। मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिन्दू हैं और मुस्लमान भी हैं। जनसंख्या में भी मैतेई ज्यादा हैं। नगा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं। राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करें तो मणिपुर के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। बाकी 20 नगा और कुकी जाित से आते हैं। अब तक हुए 12 मुख्यमंत्रियों में से दो ही जनजाति के रहे हैं। मणिपुर के 10 प्रतिशत भू-भाग पर मैतेई समुदाय का दबदबा है। यह समुदाय इंफाल घाटी में बसा है। 90 प्रतिशत पहाड़ी इलाके में प्रदेश की मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इन पहाड़ी और घाटी लोगों के बीच विवाद काफी पुराना और संवेदनशील है। बड़ी मुश्किल से मणिपुर में विद्रोही संगठनों पर अंकुश लगाया गया था। राज्य में लगभग 30 विद्रोही संगठन थे। जो अब काफी छिन्न-भिन्न हो चुके हैं। एनएससीएन (आईएम) और प्रतिबंधित एनएससीएन (के) सहित नगा समूह नगािलक या वृहत्तर नगालैंड की मांग करते रहे हैं। जबकि 10 कुकी संगठन अपने लिए एक अलग राज्य की मांग करते रहे हैं। यूनाइटेड पीपल्स फ्रंट के आठ समूह मणिपुर के क्षेत्र में एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग लम्बे अर्से से करते रहे हैं। इतने सारे समूहों की मौजूदगी से स्थितियां काफी जटिल हैं। राज्य को प्रभावित करने वाली समस्याओं में से चार प्रमुख घटक हैं। उग्रवाद, जातीय मुद्दे, आपराधिक गतिविधियां और ड्रग्स।
गौरतलब है कि मणिपुर ऐसा राज्य है जिसके महिला और पुरुष खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन किया। मणिपुर भारत के फुटबाल के गढ़ के रूप में पूरी तरह से उभर चुका है और इसी राज्य ने मैरीकॉम, चानू मीरा बाई तथा डिंको सिह जैसे प्रतिष्ठित मुक्केबाज दिए हैं। जिस राज्य ने देश को गौरव दिलाया हो वहां पर बार-बार जातीय हिंसा का भड़कना बेहद दुखद है। राज्य में 1993 के बाद इतनी भीषण हिंसा हुई है। तब एक दिन में 100 से ज्यादा लोग मारे गये थे। अबकी बार हुई हिंसा में लगभग 80 लोग मारे जा चुके हैं। जबकि सुरक्षा बलों ने 40 सशस्त्र आतंकवादियों को ढेर किया है। यह आतंकवादी लोगों के घर जला रहे थे और आम लोगों पर फायरिंग में भी शामिल थे। ताजा हिंसा में 100 से ज्यादा घर तबाह हो चुके हैं और लोग सुरकक्क्षित त स्थानों की ओर बेतहाशा भाग रहे हैं। अपने ही देश में लोग शरणार्थियों जैसा जीवन जीने को विवश हैं। हिंसा भड़कने के कारणों के बारे में बताया जाता है जब आदिवासी संगठनों ने मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में अखिल आदिवासी छात्र संघ मणिपुर के बैनर तले राज्य के सभी 10 पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकता रैली का आयोजन किया था। इस हिंसा की शुरुआत बिष्णुपुर और चूड़ाचांदपुर जिले की सीमा पर उस समय हुई जब एक भीड़ ने एक समुदाय के घरों में आग लगा दी। उसके बाद यह हिंसा तेजी से राज्य के दूसरे जिलों में भी फैल गई। चूड़ाचांदपुर में कुकी आदिवासी तबके के लोगों की आबादी सबसे ज्यादा है जबकि बिष्णुपुर में मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं।
मणिपुर की नगा और कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। राज्य के 90% क्षेत्र में रहने वाला नगा और कुकी राज्य की आबादी का 34% हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। राजनीतिक रूप से मैतेई समुदाय का पहले से ही मणिपुर में दबदबा है। नगा और कुकी जनजातियों को आशंका है कि एसटी वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों में बंटवारा होगा। मौजूदा कानून के अनुसार मैतेई समुदाय को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है।मणिपुर में हालिया हिंसा का कारण मैतेई आरक्षण को माना जा सकता है, लेकिन पिछले साल अगस्त में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की सरकार ने चूराचांदपुर के वनक्षेत्र में बसे नगा और कुकी जनजाति को घुसपैठिए बताते हुए वहां से निकालने के आदेश दिए थे। इससे नगा-कुकी नाराज चल रहे थे। मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं, जबकि एसटी वर्ग के अधिकांश नगा और कुकी ईसाई धर्म को मानने वाले हैं।
गृहमंत्री अमित शाह की सबसे बड़ी चुनौती मैतेई समुदाय और नगा, कुकी समुदायों में अविश्वास और संदेह दूर करना तथा राज्य में शांति सुनिश्चित करना है। केन्द्र को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि राज्य में हुई झड़पों में पीडि़त सभी लोगों को इंसाफ मिले। गृहमंत्री अमित शाह शांति बहाली के लिए बातचीत के पक्षधर हैं। गृहमंत्री अमित शाह लगातार राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और नगालैंड, मिजोरम और असम के मुख्यमंत्रियों से सम्पर्क बनाए हुए थे। कुकी समुदाय के कल्याण के लिए काम करने वाले संगठनों को गृहमंत्री के दौरे का इंतजार था। राज्य सरकार और गृहमंत्री अमित शाह पहले ही यह कह चुके हैं कि किसी भी समुदाय के साथ अन्याय नहीं होगा और मौजूदा जातीय संकट का हल बातचीत से ही निकाला जाएगा। देखना होगा कि बातचीत का निष्कर्ष क्या निकलता है। राज्य के सभी प्रमुख समुदायों के नेताओं को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए राज्य में शांति बहाली के लिए काम करना होगा। क्योंकि अगर लगातार हिंसा होती रही तो राज्य को बहुत नुक्सान होगा। हिसा से कुछ हासिल होने वाला नहीं।
-अशोक भाटिया