जयपुर: मेघ उत्सव की सुरमयी धुनों से गुलजार होगी गुलाबी नगरी की फिज़ा

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जयपुर। सावन की फुहारों संग जब सुर, लय और नृत्य की त्रिवेणी बहती है, तब सांस्कृतिक राजधानी जयपुर की फिजा में एक अलौकिक रंग घुल जाता है। इसी भावभूमि पर आधारित मेघ उत्सव का आयोजन 2 और 3 अगस्त को जवाहर कला केंद्र, जयपुर में होने जा रहा है। यह उत्सव डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के उत्तरी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (पटियाला) एवं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र (उदयपुर) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है। कार्यक्रम का आयोजन जवाहर कला केंद्र एवं राजीविका के सहयोग से किया जाएगा। डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की अध्यक्ष श्रेया गुहा (आईएएस) ने बताया कि मेघ उत्सव का उद्देश्य मानसून ऋतु की रचनात्मकता, सौंदर्य और सांस्कृतिक चेतना को लोक कलाओं के माध्यम से जीवंत करना है। यह दो दिवसीय सांस्कृतिक आयोजन लोक कलाकारों और शास्त्रीय प्रस्तुतियों का संगम होगा, जहां श्रोताओं और दर्शकों को भारतीय परंपरा और समकालीन सृजन के अद्वितीय मेल का साक्षात्कार होगा।

उन्होंने बताया कि 2 अगस्त की शाम अदनान ग्रुप अपने सितार और वायलिन फ्यूजन से समां बांधेंगे, जो शास्त्रीय संगीत में आधुनिक प्रयोगों की खूबसूरत झलक पेश करेगा। इसी शाम प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना कनक सुधाकर अपनी साथी कलाकारों के साथ भरतनाट्यम की मोहक प्रस्तुति देंगी, जिसमें नृत्य के माध्यम से भाव, रस और कथा की सजीव व्याख्या की जाएगी।3 अगस्त की शाम को विश्वविख्यात लोक गायक मूरलाला मारवाड़ा कबीर और सूफी परंपरा से जुड़ी रचनाओं की गायन प्रस्तुति देंगे। उनके स्वरों में आत्मा की गहराई, दर्शन की ऊँचाई और संगीत की सौम्यता का संगम देखने को मिलेगा, जो दर्शकों को आत्मिक अनुभूति से भर देगा।इस भव्य आयोजन में सामाजिक, प्रशासनिक, राजनीतिक, बौद्धिक और धार्मिक जगत की कई प्रतिष्ठित हस्तियां शिरकत करेंगी। डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की अध्यक्ष श्रेया गुहा ने आम नागरिकों से अपील की है कि वे बड़ी संख्या में इस सांस्कृतिक उत्सव में शामिल होकर लोक कलाकारों की हौसला अफजाई करें और भारतीय लोककला की समृद्ध परंपरा से रूबरू हों।प्रवेश निशुल्क रहेगा और आयोजन की शुरुआत दोनों दिन शाम 6:30 बजे से होगी। मेघ उत्सव न केवल जयपुर के सांस्कृतिक जीवन को समृद्ध करेगा, बल्कि मानसून की सुरभि में डूबी हुई भारतीय कला और लोक संस्कृति का जीवंत उत्सव बनकर उभरेगा।

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